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जातिगत जनगणना नीतीश का सियासी स्टंट या मास्टर स्ट्रोक, कहीं तेजस्वी न ले लें सारा क्रेडिट

जातीय जनगणना पर स्टैंड लेकर वह बीजेपी को भी ये संदेश देना चाहते हैं कि बिहार में मोदी उनके बॉस नहीं हैं. बिहार में मोदी जो चाहेंगे वह नहीं होगा, बल्कि वह जो चाहेंगे वो होगा.

पटना, सुशील : बिहार में जातिगत जनगणना एक ऐसा मुद्दा है जिस पर में बीजेपी और जदयू में शह और मात का खेल खेला जा रहा है. एक आेर बीजेपी जहां खुलकर कुछ कहने की स्थिति में नहीं है तो वहीं नीतीश कुमार जातिगत जनगणना को लेकर फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं. बीजेपी की बिहार इकाई के कुछ नेता भले ही जातिगत जनगणना करवाने के पक्ष में हों, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी सहमत नहीं है.

बढ़ सकता है आरक्षण का दायरा

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय संसद में पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि सरकार की जातिगत जनगणना कराने की कोई योजना नहीं है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव जातिगत जनगणना की मांग को लेकर मोर्चा खोले हुए हैं तो ऐसे में नीतीश कुमार कैसे पीछे रह सकते हैं. नीतीश कुमार जातिगत जनगणना पर सारा राजनीतिक लाभ तेजस्वी यादव को नहीं उठाने देना चाहते हैं, जिसके चलते राज्य स्तर पर जातीय जनगणना कराने का बड़ा सियासी दांव चल रहे हैं. नेताओं के बयान से पिछड़ी जातियों को यह लगने लगा है कि उनकी आबादी का दायरा बड़ा है. ऐसे में अगर जातिगत जनगणना होती है तो आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा टूट सकती है और उसका लाभ ओबीसी को मिलेगा. ऐसे में जातीय जनगणना की मांग को नीतीश कुमार कैसे नजर अंदाज कर सकते हैं.

बीजेपी को भी देना चाहते हैं संदेश

नीतीश कुमार की नज़र साल 2024 में होने वाले आम चुनावों पर है. ऐसे में उन्हें मालूम है कि अगर अपने सियासी आधार को बनाए रखना है तो उसके लिए सक्रिय रहना होगा. इस तरह जातीय जनगणना पर स्टैंड लेकर वह बीजेपी को भी ये संदेश देना चाहते हैं कि बिहार में मोदी उनके बॉस नहीं हैं. बिहार में मोदी जो चाहेंगे वह नहीं होगा, बल्कि वह जो चाहेंगे वो होगा. मंडल कमीशन लागू होने के बाद जिन क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ, उसमें लालू यादव की आरजेडी और नीतीश कुमार के जेडीयू का सियासी आधार ओबीसी वोटबैंक है. नीतीश कुमार को यह भी पता है कि इस मुद्दे पर बीजेपी अगर अपना कदम खींचती है तो उन्हें तेजस्वी का साथ मिल जाएगा. बिहार में भाजपा ने जिन दो नेताओं को दो उप-मुख्यमंत्री बना रखा है, वे भी ओबीसी हैं.

एक तीर से कई सियासी समीकरण

ऐसे में नीतीश कुमार की कोशिश जातिगत जनगणना कराकर बीजेपी के समीकरण को तोड़ने और ओबीसी जातियों को एक बड़ा सियासी संदेश देने का है. नीतीश कुमार का जातिगत जनगणना के मुद्दे पर मुखर रहने का मकसद बीजेपी के ओबीसी राजनीति को काउंटर करने का प्लान है. बिहार के सियासी समीकरण को देखते हुए बीजेपी भले केंद्रीय स्तर पर जातीय जनगणना का विरोध करती रही हो, लेकिन बिहार में वो समर्थन में खड़ी हुई है. बिहार में ओबीसी-ईबीसी के नेतृत्व के लिए राम विलास पासवान के जाने से जो जगह खाली हुई है, नीतीश इसके जरिए उसे भी भरना चाहते हैं. जातीय जनगणना के दांव से नीतीश कुमार ने एक तीर से कई सियासी समीकरण साधने का दांव चला है.  

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