तेजस्वी के ए टू जेड पर भारी है लालू का एम प्लस वाई, राजद लौटाअपने पुराने स्टेंड पर
पटना, सुशील : लालू के पुत्र और प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव पिछले कुछ महीनों से राजद को ए टू जेड की पार्टी बताते रहे हैं. विधान परिषद के चुनाव में कई सवर्णों को टिकट थमाकर तेजस्वी ने इसके संकेत भी दे दिए थे. लेकिन राज्यसभा चुनाव में मीसा भारती और पूर्व विधायक फैयाज आलम को राज्यसभा भेजने के निर्णय कर लालू प्रसाद ने यह साबित कर दिया राजद अभी भी माय यानी मुस्लिम और यादव स्टैंड पर कायम है. तभी तो पूर्व डिप्टी सीएम व राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी कहते हैं राजद परिवार से बाहर निकल ही नहीं सकता है. उन्होंने कहा लालू के लिए भ्रष्टाचार, परिवारवाद व नैतिकता तो कोई मुद्दा ही नहीं है.
चुनाव में सामने आयाअसली चेहरा
वहीं जदयू प्रवक्ता जदयू अभिषेक झा ने आरजेडी पर निशाना साधते कहते हैं कहने के लिए आरजेडी ए टू जेड की बात करती है, लेकिन इनका ध्यान एमवाई समीकरण पर ही होता है. खास वर्ग का ठेकेदार होने का ढोंग करते हैं, लेकिन मौका आने पर उस समाज को ठग लेते हैं. अगड़ी जाति के किसी खास उम्मीदवार को टिकट देते हैं तो खूब प्रचार करते हैं और कहते हैं कि ए टू जेड की पार्टी हो गई है. लेकिन असली चेहरा क्या है, वह राज्य सभा चुनाव में सामने आ गया. पहले परिवार को प्रश्रय दिया उसके बाद अल्पसंख्यक को प्राथमिकता दी गई.
एमवाई समीकरण ही सियासी संसाधन
इसमें कोई शक नहीं कि राजद एमवाई समीकरण के बदौलत ही बिहार की सत्ता पर पंद्रह वर्षो तक बनी रही. एमवाई लालू का ऐसा सियासी दांव था, जिसकी नीतीश ने 2005 में काट खोज ली और लगातार तेरह वर्षों तक सत्ता के पास फटकने नहीं दी. यह अलग बात है कि बाद में दो वर्षों के लिए अपनी शर्तों पर सत्ता का साझीदार बनाकर फिर बेदखल कर दिया. उसके बाद हुए चुनाव में लालू के हाथ से सत्ता खिसक गई, जिसके लिए वे छटपटा रहे हैं. यही कारण है कि राज्यसभा के चुनाव में राजद ने एकबार फिर अपने परमरागत वोट बैंक से जुड़े लोगों पर विश्वास जताया है.
पचास प्रतिशत परिवार का सक्सेस रेट
2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने 144 में 76 टिकट माई को 18 और वाई को 58 यानी पचास प्रतिशत से भी अधिक. अगर पारिवार की राजनैतिक पृष्ठभूमि पर गौर करें तो नौ सदस्यीय परिवार में 4 सदस्य संसद, एमएलए और एमएलसी है. अगर लालू को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित नहीं किया जाता तो इस परिवार का सक्सेस रेट पचास प्रतिशत से अधिक होता. प्रतिपक्ष का नेता हो या विधान परिषद में विपक्ष वर्षों से इसी परिवार का सदस्य काबिज है. राज्य सभा के लिए दो सीटें खाली हुई तो पहला नंबर मीसा भारती का आया. यानी यहां भी परिवार की हिस्सेदारी पचास प्रतिशत.
सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास
परिवारवादी पार्टियों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कुछ ऐसी ही राय रख्हाते हैं. उनका कहना है परिवारवादी पार्टियां लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक परिवारवादी पार्टियों का जाल लोकतंत्र के लिए खतरा बनता जा रहा है. अब सेवा का मौका उसी को मिलेगा, जो देश के विकास के लक्ष्य के साथ ईमानदारी से काम करेगा. सफलता का मंत्र सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास है. 21वीं सदी में भारत के नागरिक इसी मंत्र को आत्मसात कर बार-बार अपना जनादेश दे रहे हैं. लेकिन यह पब्लिक है सब समझ रही है कौन सेवा कर है और मेवा खा रहा है.