ओवैसी के टूटने के बाद क्या बिहार में खेला होबे ? हो रही सीक्रेट बात, क्या गिरेगी सरकार
सुशील : महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट के बीच बिहार में बड़ा राजनीतिक खेला हो गया है. मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के पांच में चार विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कराकर फूले नहीं समा रहा है. इन विधायकों का राजद में जाना भाजपा के लिए झटका है तो राजद के लिए उपलब्धि. विधान सभा में आरजेडी अब सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.
रंग लाई मनोज झा की पहल
लंबे समय से अपने पाले में लाना चाह रही थी, लेकिन आरजेडी के सांसद मनोज झा की पहल के बाद इन चारों विधायक ने आरजेडी का दामन थाम लिया है. जाहिर है, ऐसा कर मनोज झा ने पार्टी में अपनी साख तो बढ़ाई ही है. साथ ही आरजेडी को सबसे बड़ी पार्टी बनाने का क्रेडिट भी अपने खाते में कर लिया है. सांसद मनोज झा सीमांचल से आते हैं और उनकी पहल की वजह से इन चारों विधायकों ने आरजेडी का दामन थामा है.
जेडीयू में भी खुशी का माहौल
जेडीयू लगातार चुनाव के बाद भी अपनी ताकत बढ़ाने में लगी हुई है. इसको लेकर जेडीयू के भीतर भी खुशी का माहौल है.चुनाव नतीजे के बाद जेडीयू ने अपने पाले में निर्दलीय विधायक सुमित सिंह सहित जनशक्ति पार्टी के विधायक राजकुमार सिंह और बीएसपी एक इकलौते विधायक को अपने पाले में कर लिया था. इतना ही नहीं जेडीयू ने एलजेपी के सांसदों को तोड़ कर 6 में से 5 को अपने साथ मिला लिया था. लेकिन आरजेडी के ताजा कवायद से बीजेपी पहले नंबर से दूसरे नंबर पर खिसक गई है.
भाजपा के बार्गेनिंग से खफा
सूत्र बताते हैं कि बीजेपी नंबर वन पार्टी बनने के बाद मंत्रालय को लेकर जिस तरह बार्गेन कर रही थी, उससे जेडीयू खफा थी. बीजेपी भले ही धर्मेंद्र प्रधान को भेजकर बिहार में सब ठीक करने की कोशिश करें, लेकिन बीजेपी को अपनी राहें अलग करनी ही पड़ेगी, नहीं तो जेडीयू के साथ चलने की फिराक में सत्ता तेजस्वी के हाथ खिसक सकती है. आरजेडी के नंबर वन बनने से बीजेपी का मनोबल गिरेगा और जेडीयू उसको भुनाने का कोई मौका नहीं गंवाएगी. सरकार बनने की सूरत में राज्यपाल को पहले आरजेडी को ही न्योता देना पड़ेगा.
टूटा नंबर वन पार्टी का भ्रम
कहा जा रहा था कि लंबे समय से ये जेडीयू के संपर्क में थे, और समय आने पर कभी भी जेडीयू के साथ जा सकते थे. राजनीतिक जानकार कहते हैं जेडीयू की मौन सहमति के बगैर एआईएमआईएम के विधायक आरजेडी के पाले में जा ही नहीं सकते हैं. जेडीयू ने ऐसा कर बीजेपी को नंबर वन की पार्टी के मुगालते से बाहर निकाल दिया. बीजेपी अगर नहीं संभली तो आने वाले चुनाव में तेजस्वी, कन्हैया कुमार और चिराग की जोड़ी को हराना मुश्किल होगा.
बीजेपी समझ रही है खेल
तभी तो जेडीयू का खेल अच्छे तरीके से समझ रहे स्पीकर विजय कुमार सिन्हा ने नाम लिए बगैर राजनीतिक दलों और विधायकों का दायित्व भी समझाया है. उन्होंने कहा हमारे करीबी अब दूसरों के करीब जा रहे हैं. संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने भी शायरी पढ़ते हुए कह दिया कि संसदीय परंपरा को अच्छे तरीके से निभाना वो चाहते हैं और आसन उनके लिए सर्वोपरि है. लेकिन राजनीति में आसानी से कही गई बातें एक्शन में कहीं ज्यादा घातक होती है, ये अक्सर देखा जाता है.
मौके के इंतजार में तेजस्वी
सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या नीतीश पलटी मारने की सारी तैयारी कर चुके थे, जिसकी भनक बीजेपी को लग गयी है. बिहार में पिछले कुछ सरकारी आयोजनों में बीजेपी के मंत्री शामिल हुए, केंद्रीय मंत्री आए लेकिन नीतीश कुमार को बुलावा तक नहीं भेजा गया., जबकि सामान्य प्रोटोकॉल के हिसाब से राज्य के सीएम को जरूर बुलाया जाता है चाहे वह विपक्ष का ही क्यों न हो. यहां तो नीतीश कुमार गठबंधन के ही मुख्यमंत्री हैं. अब देखना यह है कि भाजपा के इस शह और मात के खेल में तेजस्वी इसका कितना लाभ ले पाते हैं.