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भाग्यनगर की बात करते करते भाजपा ने दक्षिण में चमकाया भाग्य, अब बंगाल में कमल खिलाने की बारी

नई दिल्ली, एसपीएन। ग्रेटर हैदराबाद का नगर निगम चुनाव तेलंगाना का आगामी विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था. बीजेपी ने स्थानीय स्तर के चुनाव को राष्ट्रीय स्तर का बना कर मुख्यमंत्री केसीआर और ओवैसी के मजबूत दुर्ग को ढहाने में सफलता भी प्राप्त की. भाग्यनगर की बात करने वाली बीजेपी ने हैदराबाद में झंडा लहराने के साथ ही दक्षिण में अपना भाग्य चमका दिया है.

निजाम कल्चर और रोहिंग्या बनेगा चुनावी एजेंडा

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी है. बीजेपी ने केसीआर के टीआरएस को जबरदस्त नुकसान पहुंचाने के बाद 2023 के लिए अपना एजेंडा तय कर लिया है. हैदराबाद बनाम भाग्यनगर के साथ ही ओवैसी को चुनौती देने के लिए निजाम कल्चर और रोहिंग्या का मुद्दा भी डंके की चोट पर उठाने वाली है. बीजेपी की यही रणनीति केसीआर और ओवैसी को चुनौती देने के काम आ सकती है.

कांग्रेस की खाली जगह भरने के लिए बनाई रणनीति

2014 में तेलंगाना का गठन करने के बाद कांग्रेस को उम्मीद थी कि लंबे समय से चली आ रही अलग राज्य की मांग पूरी करने के लिए उसे लोगों का भारी समर्थन मिलेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ, केसीआर की टीआरएस ने 2014 और 2018 के चुनाव में भारी बहुमत के साथ जीत कर अपनी सरकार बनाई. दूसरी तरफ, कांग्रेस का राज्य में लगातार पतन जारी रहा. कांग्रेस की इसी खाली जगह को भरने के लिए बीजेपी ने रणनीति तैयार कर ली है.

119 विस सीटों में से बीजेपी के पास सिर्फ दो सीट

हैदराबाद इलाके में विधानसभा की 24 सीटें आती हैं, जबकि 5 लोकसभा सीट हैं. ऐसे में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में बीजेपी को दक्षिण के किले में बड़ी उम्मीद दिखाई दी, क्योंकि 82 लाख आबादी वाला ये इलाका तेलंगाना में बीजेपी की भविष्य की रणनीति का हिस्सा है. फिलहाल तेलंगाना की 119 विधानसभा सीटों में से बीजेपी के पास सिर्फ 2 सीट हैं और लोकसभा की 17 सीटों में पार्टी के 4 सांसद हैं.

2023 में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती बीजेपी

2018 का विधानसभा का चुनाव बीजेपी ने इतनी ताकत से नहीं लड़ा था, बावजूद उसके तेलंगाना विधानसभा में बीजेपी को दो सीटें मिली थीं. ऐसे में बीजेपी अब 2023 के चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. दो साल पहले के विधानसभा चुनाव में टीआरएस ने राज्य की 88 सीटों पर कब्जा किया था. कांग्रेस ने 21 सीटें जीती थीं, ओवैसी की पार्टी ने 7 सीटों पर जीत हासिल की थी. औवेसी के लिए हैदराबाद हमेशा से ही पार्टी के लिए एक कवच की तरह रहा. 1984 के बाद से लगातार उसकी की झोली में हैदराबाद की लोकसभा सीट आती रही है.

 

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