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लेखिका अरुंधति रॉय और पूर्व प्रोफेसर हुसैन पर आतंकवाद निरोधी UAPA के तहत मुकदमा

अरुंधति रॉय पर आरोप है कि इन्होंने इस बात का जोर-शोर से प्रचार किया कि कश्मीर कभी भी भारत का हिस्सा नहीं था और उस पर भारत के सशस्त्र बलों ने जबरन कब्जा किया हुआ है। इसमें यहां तक कहा गया कि भारत से जम्मू-कश्मीर की आजादी के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।

Arundhati Roy Booked in UAPA: दिल्ली एलजी वीके सक्सेना ने शुक्रवार (14 जून) को लेखिका अरुंधति रॉय और कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय कानून के पूर्व प्रोफेसर डॉ. शेख शौकत हुसैन के खिलाफ यूएपीए कानून के तहत केस चलाने की मंजूरी दी। दोनों के खिलाफ साल 2010 में सुशील पंडित ने FIR दर्ज कराई थी।

अरुंधति रॉय और डा. शेख शौकत हुसैन पर 21 अक्टूबर 2010 को दिल्ली के कोपरनिकस रोड पर मौजूद LTG ऑडिटोरियम में ‘आजादी – द ओनली वे’ के बैनर तले आयोजित एक सम्मेलन में भड़काऊ भाषण देने का आरोप है। सम्मेलन में ‘कश्मीर को भारत से अलग करने’ का प्रचार किया गया था।

भाषण देने वालों में सैयद अली शाह गिलानी, एसएआर गिलानी (सम्मेलन के एंकर और संसद हमले के मामले में मुख्य आरोपी) अरुंधति रॉय, डॉ. शेख शौकत हुसैन और माओवादी समर्थक वरवर राव शामिल थे।

सम्मेलन में जिन मुद्दों पर चर्चा की गई, उनमें कश्मीर को भारत से अलग करने की बात सबसे महत्वपूर्ण थी। सम्मेलन में भाषण देने वालों में सैयद अली शाह गिलानी, एसएआर गिलानी (सम्मेलन के एंकर और संसद हमले मामले के मुख्य आरोपित), अरुंधति रॉय, डा. शेख शौकत हुसैन एवं माओवादी समर्थक वारा वारा राव शामिल थे।

गिलानी और अरुंधति रॉय पर आरोप है कि इन्होंने इस बात का जोर-शोर से प्रचार किया कि कश्मीर कभी भी भारत का हिस्सा नहीं था और उस पर भारत के सशस्त्र बलों ने जबरन कब्जा किया हुआ है। इसमें यहां तक कहा गया कि भारत से जम्मू-कश्मीर की आजादी के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।

 

साल 2010 का मामला

शौकत कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय में इंटरनेशनल लॉ के प्रोफेसर रहे हैं. इन दोनों के खिलाफ यह मुकदमा साल 2010 में दिए कथित भड़काऊ बयान को लेकर चलाया जाएगा. चर्चित बुकर प्राइज से सम्मानित हो चुकीं अरुंधति पर माओवादियों के समर्थन का भी आरोप लगता रहा है.

अरुंधति रॉय और शौकत हुसैन पर कश्मीर को भारत से अलग करने के विचार के समर्थन में भाषण देने का आरोप है. साथ ही लोगों को अपने भाषण से भारत सरकार के खिलाफ खड़े होने के लिए भड़काने का आरोप है.

आरोप है कि 21 अक्टूबर, 2010 को दिल्ली के LTG ऑडिटोरियम में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें भारत को विभाजित कर कश्मीर को अलग करने के पक्ष में प्रचार किया गया. यह आयोजन ‘आजादी- द ओनली वे’ बैनर के तले हुआ था. इस सम्मेलन में एंकर की भूमिका संसद हमले के मुख्य आरोपी एसएआर गिलानी ने निभाई थी,

जबकि भाषण देने वालों में अरुंधति और शौकत हुसैन के अलावा कश्मीरी अलगाववादी सैयद अली शाह गिलानी और माओवाद समर्थक वरवर राव शामिल थे.

इन सभी के खिलाफ 28 अक्टूबर, 2010 को दिल्ली पुलिस के पास कश्मीरी सामाजिक कार्यकर्ता सुशील पंडित ने शिकायत दर्ज कराई थी. दिल्ली के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने इस शिकायत पर रॉय और हुसैन के खिलाफ FIR दर्ज करने के आदेश दिए थे.

दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना (LG VK Saxena) ने लेखिका अरुंधति रॉय (Arundhati Roy) और कश्मीर के केंद्रीय विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय कानून के पूर्व प्रोफेसर डा. शेख शौकत हुसैन के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 45 (1) के तहत मुकदमा चलाने को मंजूरी दे दी है।

इन धाराओं में पहले से चल रहा केस

अरुंधति और हुसैन के खिलाफ सुशील पंडित की शिकायत पर साल 2023 में पहले से ही कुछ धाराओं में मुकदमा चलाने की इजाजत मिल चुकी है. दिल्ली LG ने अक्टूबर, 2023 में CRPC की धारा 196 और IPC की धारा 153ए, धारा 505 और धारा 153 बी (राष्ट्रीय एकता को हानि पहुंचाने वाले दावे) के तहत मुकदमा चलाने की इजाजत दी थी.

देश में गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने के लिए 1967 में UAPA (Unlawful Activities Prevention Act-1967) लाया गया था. मोदी सरकार ने आतंकवादी और नक्सलवादी समस्याओं से निपटने के लिए इसमें आतंक विरोधी प्रावधानों को भी शामिल किया है. इसके तहत आतंकी संगठनों और आतंकवादी व नक्सलवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले लोगों पर कार्रवाई की जा रही है. इसे बेहद कठोर कानून माना जाता है.

सामाजिक कार्यकर्ता ने दर्ज कराई थी FIR

21 अक्टूबर 2010 को दिए भाषणों को लेकर कश्मीर के सामाजिक कार्यकर्ता सुशील पंडित ने 28 अक्टूबर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद दिल्ली के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद रॉय और हुसैन के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी।

अक्टूबर 2023 में दिल्ली LG वीके सक्सेना ने CRPC की धारा 196 और IPC की विभिन्न धाराओं 153 ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना और सद्भाव बनाए रखने के लिए हानिकारक कार्य करना), 153 बी (राष्ट्रीय-एकीकरण के लिए हानिकारक आरोप, दावे) और 505 (सार्वजनिक शरारत को बढ़ावा देने वाले बयान) के तहत तहत रॉय और हुसैन पर केस चलाने की अनुमति दी थी।

 

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