शाहनवाज हुसैन की बिहार की राजनीति में एंट्री भाजपा का दूरगामी दांव
सुशील, पटना ।
याद कीजिये जब बिहार की चुनावी रैली में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ घुसपैठियों को बाहर निकाल फेंकने के वादे के साथ लौटे तो नीतीश कुमार ने दहाड़ लगायी कि ऐसा कोई माई का लाल नहीं है जो किसी को बाहर कर सके. पहले तो चिराग के चुनावी पैंतरे की बदौलत बीजेपी ने ज्यादा सीटें जीत कर नीतीश कुमार पर नकेल कस दी है.
लालू के मुस्लिम-यादव समीकरण पर निशाना
अब शाहनवाज हुसैन को बिहार भेजकर बीजेपी ने नीतीश कुमार के कनेक्ट पर धावा बोल दिया है. शाहनवाज की बिहार की राजनीति में एंट्री करवा कर एक दूरगामी दांव खेला है. पहला मोदी को नीतीश से दूर किया दूसरा पार्टी को एक मुस्लिम चेहरा मिला है. बीजेपी के इस दांव को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ऊपर एक दबाव के तौर पर भी माना जा रहा है. दिल्ली में बीजेपी का मुस्लिम चेहरा मुख्तार अब्बास नकवी हैं और यूपी में मोहसिन रजा, करीब करीब वैसे ही शाहनवाज हुसैन को बीजेपी बिहार में अपने मुस्लिम चेहरे के तौर पर पेश कर रही है. शाहनवाज हुसैन को बिहार भेज कर बीजेपी कहीं लालू यादव के मुस्लिम-यादव समीकरण पर निशाना तो नहीं साध रही है.
सुशील मोदी के साथ एक्सचेंज ऑफर
राजनीतिक जानकारों की मानें तो साथ ही असदुद्दीन ओवैसी की बिहार में बढ़ती सक्रियता के मद्देनजर भी शाहनवाज की एंट्री को महत्वपूर्ण माना जा रहा है. बिहार के सुपौल से आने वाले सैयद शाहनवाज हुसैन 1999 में किशनगंज से लोक सभा पहुंचे थे और फिर 2006 और उसके बाद 2009 में भागलपुर से सांसद चुने गये, लेकिन 2014 में मिली हार ने बीते छह साल में शाहनवाज हुसैन को काफी पीछे धकेल दिया है. अब सवाल ये कि क्या शाहनवाज हुसैन बिहार में सुशील मोदी वाली भूमिका बीजेपी नेतृत्व की अपेक्षाओं पर खरा उतरते हुए निभा पाएंगे? क्या शाहनवाज हुसैन को पटना भेजे जाने को नीतीश कुमार के लिए सुशील मोदी के साथ एक्सचेंज ऑफर समझा जाना चाहिये?
अटल मंत्रिमंडल में नीतीश से ज्यादा हनक
2005 से लगातार 2020 तक विधान परिषद में टिके सुशील मोदी को जब उपमुख्यमंत्री की सीट खाली करनी पड़ी तो उन्हें बीजेपी ने राज्य सभा में भेजने का फैसला किया. एक बार फिर सुशील मोदी ही जाने-अनजाने शाहनवाज हुसैन के काम आए. नीतीश कुमार से उम्र में 17 साल छोटे होने के बावजूद शाहनवाज हुसैन के हैसियत की हनक काफी हुआ करती थी – और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के वो पसंदीदा मंत्री हुआ करते थे.
गुटबाजी का शिकार बीजेपी में आएगी एकजुटता
शाहनवाज हुसैन जैसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता के रहने से बिहार में पार्टी को मजबूती मिलेगी. खास तौर पर सुशील मोदी के दौर में गुटबाजी का शिकार रही बीजेपी अब नए चेहरे के बूते एकजुटता की ओर बढ़ सकती है. केंद्रीय नेतृत्व का साथ और विश्वास मिलने पर यह काम और भी आसान हो जाएगा. बीजेपी के कई अन्यौ नेताओं ने इस कदम को पार्टी की मुस्लिम विरोधी छवि से उबरने का मौका बताया है. शाहनवाज हुसैन वह चेहरा बन गए हैं, जो राष्ट्रवादी मुस्लिमों के बीच पार्टी की विकृत छवि को लिए बेहतरीन ढंग से दूर कर सकते हैं.
मुस्लिम नेता को विधान परिषद भेज की भरपाई
बिहार के सीमांचल समेत तमाम वैसे क्षेत्रों में जहां की मुस्लिम आबादी अधिक है, पार्टी के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैं. शाहनवाज का आना बिहार में मुस्लिम राजनीति के लिए भी एक नई दिशा दिखाने जैसा होगा. बिहार विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं देने के कारण बीजेपी को सियासी जानकारों की मानें तो शाहनवाज के रूप में एक मुस्लिम नेता को विधान परिषद भेजकर बीजेपी इसकी भरपाई करना चाहती है. यही नहीं, बिहार बीजेपी में ‘नेताओं की फौज’ के बीच शाहनवाज हुसैन की छवि युवा, तेजतर्रार और भरोसेमंद नेता की है. यह काबिलियत उन्हें बिहार में पार्टी के चेहरे के तौर पर पेश करेगी.
2014 में आरजेडी से खानी पड़ी थी शिकस्त
शालीन व्यवहार और वाकपटुता के लिए पहचाने जाने वाले शाहनवाज हुसैन वर्ष 2014 में हुए लोकसभा के चुनाव में भागलपुर संसदीय सीट से बीजेपी के उम्मीदवार थे, जिसमें उन्हें आरजेडी प्रत्याशी से शिकस्त खानी पड़ी थी. 2019 के चुनाव में उन्हें पार्टी की तरफ से चुनाव का टिकट नहीं दिया गया था. बिहार विधानसभा चुनाव के समय भी शाहनवाज का नाम तेजी से उछला था, लेकिन तब भी पार्टी में इस मामले पर चुप्पी बनी रही थी. ये वक्त का तकाजा है कि 2014 में लोक सभा चुनाव हारने के बाद शाहनवाज हुसैन थोड़े पिछड़ गये और अब उनके नीतीश सरकार में शामिल किये जाने की संभावना की चर्चा हो रही है.
मंत्रिमंडल में मिल सकती है जगह
इसे लेकर शाहनवाज हुसैन के समर्थक भी हैरान हैं – आखिर क्या सोच कर और किस रणनीति के तहत बीजेपी नेतृत्व ने शाहनवाज हुसैन को बिहार विधान परिषद में भेजने का फैसला किया है. इस बार शाहनवाज हुसैन का राजनीतिक वनवास लंबा खिंचने लगा. बिहार से हर खाली होने वाली राज्य सभा और विधान सभा सीटों के रास्ते सदन में उनकी वापसी की चर्चाएं तो होती रहीं लेकिन उनका इंतजार लंबा होता गया. शाहनवाज हुसैन को मिले इनाम के साथ ही इम्तिहान भी देना होगा. अगर वे इस इम्तिहान में खरे उतरते हैं तो भविष्य में बीजेपी के मुस्लिम चेहरे से बढ़ कर भी अपनी भूमिका निभा सकते हैं.